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लोक संस्कृति और महोत्सव

परिचय

सिंहभूम जिला लोकप्रिय रूप से ‘सोनार सिंहभूम’ या स्वर्ण सिंहभूम के रूप में जाना जाता है। झारखंड पठार के दक्षिणी क्षेत्र में स्वर्ण सिंहभूम अपने खनिजों के साथ-साथ सांस्कृतिक विरासत से काफी समृद्ध है। खण्डित गांवों की शुष्क प्रतिकूल भूमि ने एक अद्वितीय लोक परंपरा संग्रहित की है। स्वर्णरेखा और खरकाई नदियों की घाटी और दलमा पहाड़ी में प्रथम आदिवासी और मिश्रित द्रविड़ समुदाय प्राचीन काल से रहते हैं। स्वाभाविक रूप से इस भूमि की संस्कृति में प्राचीन और आदिवासी तत्व भी शामिल हैं। चूंकि जमीन पूरी तरह से किसी भी विदेशी संस्कृति से प्रभावित नहीं हुई है, इसलिए इसने अपने प्रतिष्ठित लोक संस्कृति की विशिष्टता और पहचान को बनाए रखा है जो कि अपने त्यौहारों और उत्सवों के माध्यम से दिखाई देता है। यहां लगभग हर महीने या हर मौसम में अपने स्वयं के त्यौहार और उत्सव और अन्य महत्व होते हैं। उनमें से मुख्य सरहुल, चैत्र-गंजन, करम, बन्दना और मकर या टूसू परब हैं।

करम

एक और बड़े पैमाने पर मनाया जाने वाला त्यौहार करम है जो भद्रा महीने में चंद्रमा की कलाओं के 11 वें दिन आयोजित होता है। यह यौवनऔर युवाओं का त्यौहार है। गांवों के युवा जंगल में आपस में मिलते हैं, जहां वे नृत्य करते हैं, गाना गाते हैं एवं करम देवता के नाम से जाने वाले देवता की पूजा के लिए फल और फूलों को एकत्रित करते हैं। शाम को, जब पूजा खत्म हो जाती है उसके बाद रात भर नृत्य और गायन करते हैं। पूरा पठार युवतियों के नृत्य, भावनात्मक गीत और किशोरों की खुशी के साथ गूँजने लगता है। यह वास्तव में एक महत्वपूर्ण और जीवंत युवा उत्सव का एक दुर्लभ उदाहरण है। साथ ही, अविवाहित लड़कियां जवा त्यौहार मनाती हैं, जिसमें अपनी तरह का नृत्य और गीत होता है। यह मुख्य रूप से प्रजनन क्षमता और बेहतर घर की अपेक्षा के साथ आयोजित किया जाता है। अविवाहित लड़कियां अंकुरित बीज के साथ एक छोटी टोकरी सजाती हैं| ऐसा माना जाता है कि अनाज के अच्छे अंकुरण के लिए की गयी पूजा प्रजनन क्षमता में भी वृद्धि करेगी। लड़कियां ‘बेटा’ के प्रतीक के रूप करम देवता को हरा खरबूज भी देती हैं। यह मनुष्यों की आदिकालीन अपेक्षा (अनाज और बच्चे) को दर्शाता है |